इस शताब्दी का महानतम बिभूति.....जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

 


India :
 आज सम्पूर्ण विश्व पंचम मौलिक जगद्गुरू स्वामी श्री कृपालु जी महाराज का जन्म शताब्दी महोत्सव माना रहा है । ये ऐसा व्यक्तित्व है जिन्होने अपने अलौकिक ज्ञान ,साहित्य सत्संग और आदर्श के द्वारा जीवन पर्यंत मानव जाति की सेवा की । जिनके दिव्य ज्ञान के प्रकाश ने सम्पूर्ण विश्व को आलोकित कर दिया । जिनका दिव्य सत्संग प्राप्त कर लाखो लोगो ने अपना जीवन धन्य किया । जिन्होने सम्पूर्ण विश्व मे भक्ति का प्रचार करके भारतीय  सनातन धर्म व संस्कृति को समृद्धि प्रदान की , जिन्होने विश्व को भक्ति मंदिर , प्रेम मंदिर , कीर्ति मंदिर जैसे दिव्य अनुपमेय उपहार दिये साथ ही साथ नारी शिक्षा को प्रोत्साहित करने हेतु कृपालु महिला महाविद्यालय , कृपालु बालिका इंटर्मीडियट कॉलेज , कृपालु बालिका प्राइमरी  स्कूल  की स्थापना की जहा प्रति लगभग 3500 बालिकाओ को   निःशुल्क शिक्षा के साथ साथ निःशुल्क परिवहन , निःशुल्क यूनिफ़ोर्म आदि  प्रदान किया जाता  है । और साथ ही साथ चिकित्सा के क्षेत्र  मे  3 हॉस्पिटल(जगद्गुरू कृपालु चिकित्सालय मनगढ़ /बरसाना/वृन्दावन ) का निर्माण कराया जहा पूर्णत: निःशुल्क इलाज एलोपथिक आयुर्वेदिक नेचरोपथिक पद्धति किया जाता है । और  निःशुल्क दवाइया , एम्ब्युलेन्स सुविधा ,समय समय पर नेत्र शिविर , रक्त दान शिविर का भी आयोजन करता है जो इन ग्रामीण क्षेत्रो के लिए वरदान है और कहा तक कहे प्रति वर्ष 5000 से अधिक साधुओ और विधवाओ को उनकी जरूरत की सामाग्रीयो का वितरण किया जाता है

अपने कृपालु नाम को साकार करते हुए अनंत जीवो पर कृपाकि वृष्टि कि ऐसे दिव्य महापुरुष का प्राकट्य सन 1922 को  शरद पूर्णिमा कि मध्य रात्रि मे भक्ति धाम मनगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) मे हुआ । शरद पूर्णिमा के दिन ही श्री कृष्ण भगवान ने जीवों को सर्वोच्च भक्ति रस प्रदान किया था ।

16 वर्ष कि अल्प आयु से ही जीवों के  कल्याणार्थ अथक परिश्रम प्रारम्भ कर दिया । 1955 को श्री महाराज जी ने  चित्रकूट मे संत सम्मेलन का आयोजन करवाया जहा भारतवर्ष के सभी प्रमुख विद्वानो को आमंत्रित किया इसके बाद 1956 मे कानपुर मे ऐसा ही एक और संत सम्मेलन करवाया जिसमे इनके अलौकिक प्रवचन को सुन कर काशी के आचार्यो ने इन्हे काशी आमंत्रित किया । ये ज्ञात हो कि काशी विद्वत परिषत 500 विद्वानो कि विश्व कि एक मात्र सभा है। काशी मे इनके अलौकिक संस्कृत मे प्रवचन को सुन कर विद्वत मण्डल ने एक मत होकर इनको जगद्गुरुत्त्म पद से विभूषित किया । और इनके अष्ट सात्विक भावों को देख कर इनको भक्ति योग रसवातार कि उपाधि प्रदान कि ।

जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज विश्व के पंचवे मौलिक जगद्गुरू है इनसे पूर्ववर्ती जगद्गुरू के नाम 1. आदी जगद्गुरू श्री शंकरचार्य 2. जगद्गुरू श्री रामानुजाचार्य 3. जगगद्गुरु श्री निम्बर्काचार्य 4. जगद्गुरू  श्री माधवाचार्य ।  जगद्गुरू कृपालु जी महाराज ने विशाल साहित्य को भी प्रकट किया है जिसमे प्रेम रस सिद्धान्त , सेवक सेव्य सिद्धान्त , प्रेम रस मदिरा  राधा गोविंद गीत श्यामा श्याम गीत ब्रज रस माधुरी इत्यादि ग्रंथों को प्रकट किया । जिसमे समस्त शास्त्रो का सार समस्त विरोधाभाषी सिद्धांतो के समन्वय अत्यंत सरल भाषा मे प्रकट किया ताकि साधारण जनता भी वेदो शास्त्रो के कठिन सिद्धांतों को समझ कर अपना कल्याण कर सके। सम्पूर्ण मानव समाज इनके योगदान के लिए चीर काल तक इनका ऋणी रहेगा ।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज जी के दिव्य कर कमलों से प्रतिष्ठित ब्रज गोपिका सेवा मिशन गत 23 वर्षों से पूजनीया रासेश्वरी देवी जी एवं स्वामी श्री युगल शरण जी के अथक प्रयास से  भारत एवं विदेशों में भारतीय सनातन दर्शन का प्रचार एवं प्रसार कर रहा है।  आज हम सभी मिलकर ब्रज गोपिका सेवा मिशन से तरफ़ से इन महान विभूती को इनके  100 वे जन्मदिन कि कोटि कोटि बधाई देते है और इनके चरण कमल मे प्रणाम करते हुये कृपा कि याचना करते है ।

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form