Festiwal
Jalore
Rajasthan
Rakshabandhan
मोदरान/जालोर: कस्बे स्थानीय गाव समेत आस पास के सभी गावो मे सेरणा, धानसा, धंनाणी, धनजी वाडा, थलवाड रक्षाबंधन का त्योहार मनाया रक्षाबंधन के इस भाई बहन के पवित्र बंधन को बहन ने अपने भाई की कलाई पर राखी बांध भाई की लम्बी उम्र की कामना की ओर एक तरफ छत की सीढ़ियों पर रूठकर बैठी एक नन्ही बहना। उसके इस रूठने से सबसे ज्यादा व्यथित अगर कोई है तो वह है उसका भाई।
भोजन की थाली लेकर उसके पास जाने वाला पहला व्यक्ति होता है, उसका भाई।स्कूल से अपनी बहन को लेकर आता एक छोटा-सा भाई। भाई के छोटे लेकिन सुरक्षित हाथों में जब बहन का कोमल हाथ आता है तब देखने योग्य होता है, भाई के चेहरे से झलकता दायित्व बोध, उठते हुए कदमों में बरती जाने वाली सजगता और कच्ची-कच्ची परेशान आंखें। घर पर जो बहन भाई से ठुनकी-ठुनकी रहती होगी, बीच राह पर वही भोली-सी हिरनी हो जाती है।भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, आत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। जो लंबी डगर पर चिलचिलाती प्रचंड धूप में हरे-भरे वृक्ष के समान खड़े हैं।
जिसकी घनी छांव में कुछ लम्हें बैठकर व्यक्ति संघर्ष पथ पर उभर आए स्वेद बिंदुओं को सुखा सके और फिर एक शुभ मुस्कान को चेहरे पर सजाकर चल पड़े जिंदगी की कठिन राहों पर, जूझने के लिए। त्योहार तभी सही मायनों में खूबसूरत होगा जब बहन का सम्मान और भाई का चरित्र दोनों कायम रहे। यह रेशमी धागा सिर्फ धागा नहीं है।
राखी की इस महीन डोरी में विश्वास, सहारा और प्यार गुंथा हैं और कलाई पर बंधकर यह डोरी प्रतिदान में भी यही तीन अनुभूतियां चाहती हैं। पैसा, उपहार, आभूषण, कपड़े तो कभी भी, किसी भी समय लिए-दिए जा सकते हैं लेकिन इन तीन मनोभावों के लेन-देन का तो यही एक पर्व है वो है रक्षाबंधन ।
रक्षा बन्धन विशेष: भावुक पलों की भीनी-भीनी यादें, राखी के बहाने
मोदरान/जालोर: कस्बे स्थानीय गाव समेत आस पास के सभी गावो मे सेरणा, धानसा, धंनाणी, धनजी वाडा, थलवाड रक्षाबंधन का त्योहार मनाया रक्षाबंधन के इस भाई बहन के पवित्र बंधन को बहन ने अपने भाई की कलाई पर राखी बांध भाई की लम्बी उम्र की कामना की ओर एक तरफ छत की सीढ़ियों पर रूठकर बैठी एक नन्ही बहना। उसके इस रूठने से सबसे ज्यादा व्यथित अगर कोई है तो वह है उसका भाई।
भोजन की थाली लेकर उसके पास जाने वाला पहला व्यक्ति होता है, उसका भाई।स्कूल से अपनी बहन को लेकर आता एक छोटा-सा भाई। भाई के छोटे लेकिन सुरक्षित हाथों में जब बहन का कोमल हाथ आता है तब देखने योग्य होता है, भाई के चेहरे से झलकता दायित्व बोध, उठते हुए कदमों में बरती जाने वाली सजगता और कच्ची-कच्ची परेशान आंखें। घर पर जो बहन भाई से ठुनकी-ठुनकी रहती होगी, बीच राह पर वही भोली-सी हिरनी हो जाती है।भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, आत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। जो लंबी डगर पर चिलचिलाती प्रचंड धूप में हरे-भरे वृक्ष के समान खड़े हैं।
जिसकी घनी छांव में कुछ लम्हें बैठकर व्यक्ति संघर्ष पथ पर उभर आए स्वेद बिंदुओं को सुखा सके और फिर एक शुभ मुस्कान को चेहरे पर सजाकर चल पड़े जिंदगी की कठिन राहों पर, जूझने के लिए। त्योहार तभी सही मायनों में खूबसूरत होगा जब बहन का सम्मान और भाई का चरित्र दोनों कायम रहे। यह रेशमी धागा सिर्फ धागा नहीं है।
राखी की इस महीन डोरी में विश्वास, सहारा और प्यार गुंथा हैं और कलाई पर बंधकर यह डोरी प्रतिदान में भी यही तीन अनुभूतियां चाहती हैं। पैसा, उपहार, आभूषण, कपड़े तो कभी भी, किसी भी समय लिए-दिए जा सकते हैं लेकिन इन तीन मनोभावों के लेन-देन का तो यही एक पर्व है वो है रक्षाबंधन ।
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