विशेष: फोग-मरू क्षेत्र का मेवा




जयपुर, 15 सितम्बर,2016  केलिगोनम की करीब 60 प्रजातियां झाडी या छोटे वृक्षों के रूप में उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी एशिया व दक्षिणी यूरोप में पाई जाती है। इनमें से केलिगोनम पोलिगोनाइडिस जिसे स्थानीय भाषा में फोग, फोगाली, फोक तथा तूरनी आदि नामों से पुकारा जाता है। यह पोलिगोनेएसी कुल का सदस्य है। फोग सफेद व काली रंग की झाडी है जिसमें शाखित शाखाएं होती है। यह अत्यंत शुष्क एवं औस दोनों परिस्थति में जीवित रह सकता है। भारत में यह उतरी पंजाब व पश्चिमी राजस्थान में अधिक मिलता है। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान में बागोही पहाडियों मे आर्मीनिया व सीरिया में भी मिलता हेै। पश्चिमी राजस्थान में केलिगोनम पोलीगोनाइडिस सामान्यतः 80 मिमी से 500 मिमी वर्ष वाले तथा 32-40 डिग्री से. गे्र. तापमान वाले इलाको में मिलता है। यह रेतीले इलाको, टिब्बों तथा चटटानी क्षेत्रों मे भी उग सकता है। इसमें पुष्पण प्रायः फरवरी के अंत से मार्च के मध्य तक होता है। फल सामान्यतः मार्च के अंत तक या अपैल मध्य तक परिपक्व हो जाते है। इसके एक पौधे से डेढ से 4 किलो तक बीज प्राप्त हो सकता है। इन्हें कायिक जनन द्वारा कलमों से भी उगाया जा सकता है। यह धीरे-धीरे बढने वाला पादप है तथा 7-8 वर्षो में एक छोटे वृक्ष की उंचाई तक ही पंहुच पाता है। इसकी टहनियों का तथा पत्तियों का फेन्सिंग  व चारे के रूप में तथा जडों का ईधन के रूप में उपयोग होता हैे। इसका उपयोग न केवल चारे व ईधन हेतु होता है वरन यह एक अच्छा मृदा बांधने वाला पादप भी है तथा मृदा स्थिरीकरण में प्रयुक्त होता है। गांवो में इसके पुष्पों व पुष्प कलियों का उपयोग सलाद के रूप में दही के साथ किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह उंटो व अन्य जानवरों हेतु भी पोैष्टिक खाद्य है। इसके पुष्पों में प्राटीन अधिक होता है तथा प्रोटीन व कार्बोहाइडे्रेट  का अनुपात 1.5 होता है। इसके पुष्पों का प्रयोग आग से जलने पर दवा के रूप में तथा इसकी पत्तियों का जूस, आकलेटेक्स के विष के प्रतिरोधी के रूप में होता है। इसकी जडो का सत्व कटेचू के साथ मिलाकर गले की खराश में प्रयुक्त होता है। फोग का राजस्थान में सांस्कृतिक  महत्व भी है। गांवो मे फोग के बारे मे कई प्रकार की किवदंतियां प्रचलित है जैसे कि सांगर फोग, थाली को मेवो अर्थात खेजडी की फली व फोग के पुष्प मरू क्षेत्र में शुष्क मेवे के समान है। इसी प्रकार सांगर गनी, केर तिल, आक गना, कपास, फोगास फोटिया बादली बंधे समे की आस भी है। अर्थात, यदि खेजडी की फली अच्छी है तो गेंहूं की फसल अच्छी होगी, केर अच्छा हो रहा है तो तिल की फसल उत्तम होगी। इस प्रकार आक की वृद्धि अच्छी होने पर कपास की फसल अच्छी होगी तथा फोग से पुष्प अच्छा होगा तो अच्छा समय आने वाला है। इस प्रकार फोग (केलिगोनम पोलगोनाइडिस) मृदा संरक्षण में, शुष्क मेवे के रूप में स्थानीय दवाई के रूप में तथा ग्रामीणों के सांस्कतिक महत्व के रूप में अत्यन्त उपयोगी है। परन्तु लगातार दोहन के कारण इसकी संख्या अब बहुत कम रह गई है तथा इसके लुप्त होने के आसार बन गये है। ---  

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